सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी : “जब देश कठिन समय में है, तब काल्पनिक आरोप क्यों?”
नई दिल्ली | इवनिंग न्यूज डेस्क
भारत में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए उन याचिकाकर्ताओं को कड़ी फटकार लगाई, जिन्होंने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को अंडमान सागर में छोड़े जाने का दावा किया था।
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ — न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह — ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि जब देश कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से जूझ रहा है, ऐसे समय में काल्पनिक आरोप लगाकर अदालत का समय क्यों बर्बाद किया जा रहा है?
अदालत ने आरोपों को “अप्रमाणिक” और “काल्पनिक” बताया
याचिका में कहा गया था कि महिलाओं और बच्चों सहित 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार निर्वासित करने के इरादे से उन्हें अंडमान सागर में छोड़ दिया गया।
इस पर कोर्ट ने गंभीरता से सवाल उठाते हुए कहा, “इन आरोपों को साबित करने के लिए क्या प्रमाण हैं? क्या आपके पास कोई पुष्ट प्रमाण है?”
सोशल मीडिया सामग्री पर सवाल
पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रस्तुत सामग्री को लेकर भी चिंता जताई।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यह सामग्री “सोशल मीडिया से ली गई प्रतीत होती है” और इसकी विश्वसनीयता संदिग्ध है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस तरह की अप्रमाणिक सूचनाओं के आधार पर किसी भी तरह की अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती।
कॉल रिकॉर्डिंग भी अप्रमाणिक
याचिकाकर्ताओं की ओर से रोहिंग्या शरणार्थियों और याचिकाकर्ता के बीच कथित फोन कॉल की रिकॉर्डिंग भी पेश की गई, लेकिन कोर्ट ने उसे अस्वीकार करते हुए कहा कि इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं की गई है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का हवाला भी अस्वीकार
वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ने सुनवाई के दौरान संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त की एक रिपोर्ट का हवाला दिया, लेकिन पीठ ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि केवल अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता।
अगली सुनवाई 31 जुलाई को
हालांकि, कोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिका की प्रति अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल को भेजी जाए, ताकि इसे सरकार के संबंधित विभागों तक पहुंचाया जा सके। इस मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष होगी।