इफ्ला के सेक्रेटरी जनरल ने डॉ. दीपक श्रीवास्तव को “सर्टीफिकेट ऑफ कन्ट्रीब्यूशन” से किया सम्मानित
डिजिटल डेक्स। इवनिंग न्यूज
कोटा। विश्व के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित पुस्तकालय संगठन इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ लाइब्रेरी एसोसिएशन्स एंड इंस्टीट्यूशंस (इफ्ला) ने भारतीय पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक क्षण जोड़ा है। इफ्ला की महासचिव शैरोन मेमिस ने राजस्थान के कोटा स्थित राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय के अध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव को “सर्टीफिकेट ऑफ कन्ट्रीब्यूशन” से सम्मानित किया है।
अंतरराष्ट्रीय पहचान का स्वर्णिम अवसर
यह सम्मान डॉ. श्रीवास्तव द्वारा इफ्ला की रणनीति (2024-29) का हिंदी में अनुवाद करने के लिए प्रदान किया गया है। इफ्ला की आधिकारिक वेबसाइट पर जारी “एडेप्टिंग एण्ड एडोप्टिंग: इनिशिएटिव” के अंतर्गत उनके इस महत्वपूर्ण योगदान को विशेष रूप से सराहा गया है।
इस प्रतिष्ठित सम्मान के साथ, डॉ. श्रीवास्तव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इफ्ला की दृष्टि को अधिक व्यापक और समावेशी बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए विश्व मानचित्र पर अंकित हो गए हैं।
“ज्ञान के लोकतंत्रीकरण का अभियान”
इफ्ला की महासचिव शैरोन मेमिस ने अपने संदेश में कहा, “हमारा कार्य वास्तव में तभी फलता-फूलता है जब हमारे हर सदस्य इसे पढ़ सकें, समझ सकें और उस पर कार्य कर सकें। डॉ. श्रीवास्तव के अनुवाद ने सचमुच हमारे वैश्विक दायरे को विस्तृत किया है और हिंदी भाषी समुदाय तक हमारी पहुंच को सुनिश्चित किया है।”
उन्होंने आगे जोड़ा, “यह अनुवाद केवल शब्दों का परिवर्तन नहीं है, बल्कि एक संस्कृति और विचारधारा का पुल है जो विश्व के विभिन्न क्षेत्रों को पुस्तकालय विज्ञान के समान मूल्यों से जोड़ता है।”
अंतरराष्ट्रीय मार्गदर्शन का फल
इस गौरवपूर्ण उपलब्धि के पीछे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व और प्रमुख अनुवादक संजय बिहानी का महत्वपूर्ण मार्गदर्शन रहा है। उनके नेतृत्व और प्रेरणा से ही डॉ. श्रीवास्तव इस वैश्विक पहल से जुड़ सके। यह सहयोग भारत की ओर से इफ्ला की समावेशी पहुँच को और अधिक सशक्त बनाता है।
भारतीय पुस्तकालय क्षेत्र का गौरव
डॉ. श्रीवास्तव की यह उपलब्धि केवल एक व्यक्तिगत सम्मान नहीं है, बल्कि समग्र भारतीय पुस्तकालय विज्ञान क्षेत्र के लिए गर्व का विषय है। उनकी भागीदारी ज्ञान के लोकतंत्रीकरण और समावेशी पहुँच के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती है – वही मूल्य जिन्हें वे राजस्थान में सार्वजनिक पुस्तकालय सेवाओं के नेतृत्व में लगातार प्रोत्साहित कर रहे हैं।
यह रखता है मायने
पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि यह सम्मान न केवल डॉ. श्रीवास्तव के व्यक्तिगत प्रयासों का परिणाम है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय भाषाओं की बढ़ती स्वीकार्यता का भी प्रतीक है।
“भाषाई विविधता के युग में, डॉ. श्रीवास्तव का यह योगदान दर्शाता है कि किस प्रकार स्थानीय भाषाएँ वैश्विक ज्ञान के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यह न केवल भारतीय भाषाओं के लिए, बल्कि संपूर्ण पुस्तकालय जगत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।”
अंतरराष्ट्रीय मानकों पर कार्य
इस सम्मान के बाद अब डॉ. श्रीवास्तव का लक्ष्य कोटा और राजस्थान के पुस्तकालयों में अंतरराष्ट्रीय मानकों को लागू करने पर केंद्रित है। वे पुस्तकालय सेवाओं के डिजिटलीकरण और आधुनिकीकरण के माध्यम से राज्य के सुदूर क्षेत्रों तक ज्ञान की पहुंच सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं।
इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर डॉ. श्रीवास्तव ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “यह सम्मान मेरे लिए नहीं, बल्कि भारतीय भाषाओं और हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए है। मेरा विश्वास है कि ज्ञान तभी सार्थक है जब वह सबके लिए सुलभ हो। इफ्ला के साथ यह सहयोग सिर्फ शुरुआत है – हमारा लक्ष्य है पुस्तकालयों के माध्यम से ज्ञान के प्रसार को और अधिक समावेशी बनाना।”