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कोटा। भारत में तेजी से फैल रहे जीवनशैली से जुड़े रोगों की सूची में थायरॉयड विकार एक ऐसा रोग है, जो जितना सामान्य है, उतना ही अक्सर अनदेखा किया गया भी। विशेष रूप से महिलाओं में यह रोग तेजी से पांव पसार रहा है, और इसके शुरुआती लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि कई बार मरीज वर्षों तक इससे अनजान रहते हैं।
इसी पृष्ठभूमि में 25 मई – विश्व थायरॉयड दिवस के अवसर पर कोटा स्थित श्रीजी हॉस्पिटल द्वारा एक विशेष निःशुल्क थायरॉयड जांच शिविर प्रात 10 से दोपहर 02 बजे तक एवं जन-जागरूकता सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य आमजन में थायरॉयड विकारों को लेकर जागरूकता बढ़ाना और समय पर जांच व उपचार के लिए प्रेरित करना है।
थायरॉयड: शरीर की सूक्ष्म नियंत्रक ग्रंथि
गर्दन में स्थित थायरॉयड ग्रंथि देखने में भले ही छोटी हो, लेकिन इसका कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह ग्रंथि शरीर के मेटाबोलिज़्म, ऊर्जा, तापमान नियंत्रण, हार्मोन संतुलन और कई आंतरिक प्रणालियों को संचालित करती है। इसके संतुलन में ज़रा सी गड़बड़ी भी स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है।
डॉ. पार्थ जेठवानी (DM, एंडोक्रिनोलॉजी) बताते हैं, “बहुत से मरीज यह मानते हैं कि थायरॉयड की दवा एक बार शुरू हुई तो जिंदगी भर लेनी होगी। यह पूरी तरह सही नहीं है। कई बार यह अस्थायी विकार होता है, जो समय पर इलाज से पूरी तरह ठीक हो सकता है।”
डा जेठवानी ने कहा कि वजन बढ़ना, भले ही आहार सामान्य हो,त्वचा का सूखापन, बाल झड़ना,कब्ज़ और मूड स्विंग,महिलाओं में मासिक चक्र की अनियमितता और बांझपन,बच्चों में वृद्धि अवरोध (कम कद) होना प्राय आम लक्षण है साथ ही हाइपरथायरॉयडिज़्म—थायरॉयड की अधिकता के कारण दिल की धड़कन तेज होना (palpitations),घबराहट, चिंता और चिड़चिड़ापन,
भूख बढ़ने के बावजूद वजन घटना,अत्यधिक पसीना आना,महिलाओं में मासिक धर्म में अनियमितता, आदि लक्षण है।विशेषज्ञों के अनुसार, यदि इन लक्षणों को समय पर पहचाना और जाँच किया जाए, तो थायरॉयड विकारों का प्रभावी उपचार संभव है।
नए उपचार विकल्प और तकनीकी उन्नति
थायरॉयड के इलाज में पारंपरिक T4 थेरेपी के अलावा अब T3 या संयोजन थेरेपी जैसे विकल्प भी उपलब्ध हैं, जो उन रोगियों के लिए उपयुक्त हो सकते हैं, जिन पर सामान्य दवाएं असर नहीं करतीं। इसके अतिरिक्त, थायरॉयड नोड्यूल्स यानी ग्रंथि में बनने वाली गांठें भी एक आम समस्या हैं। अधिकतर यह सौम्य (benign) होते हैं, लेकिन कुछ मामलों में यह थायरॉयड कैंसर का संकेत भी हो सकते हैं। इसलिए समय पर अल्ट्रासाउंड और फाइन नीडल एस्पिरेशन (FNA) जांच अत्यंत आवश्यक है।
डॉ. जेठवानी का मानना है कि भारत में थायरॉयड को लेकर जागरूकता की कमी आज भी एक बड़ी चुनौती है। लोग इसे केवल ‘दवा खाने का रोग’ मानते हैं और इसके पीछे के हार्मोनल असंतुलन, पोषण, तनाव और अनुवांशिक कारणों को नजरअंदाज करते हैं।