रंगोली सजाई, बने स्वागत द्वार, गुरुदेव आदित्य सागर का कोटा में मंगल प्रवेश

उपलब्धि पर अपनी सहजता न छोड़ें — गुरुदेव आदित्य सागर जी महाराज
— लाभ का मद और लोभ त्यागें, सहज बने रहें
— कृत्रिमता या दिखावे से बचें,उपलब्धियों से अहंकार न आने दें

कोटा। सुंदर रंगोलियों से सजा विहार मार्ग, दूर से दिखती जैन पताका, गाजे-बाजे और गुरुदेव के जयकारों से गुंजता विहार मार्ग,हर्षोल्लास से नाचते-गाते जैन बंधु, गुरुदेव आदित्य सागर के मंगल प्रवेश से खुशियों का माहौल,गुरूदेव की अगवानी में बने भव्य तोरण द्वार,पादप्रच्छालन कराते लोग यह नजारा था श्रुतसंवेगी श्रमणरत्न मुनि श्री 108 आदित्यसागर जी मुनिराज ससंघ का कोटा में आगमन का। उन्होने नयापुर स्टेडियम से कुन्हाडी जैन मंदिर की ओर विहार का। मार्ग में हजारों भक्त गुरूदेव का जयकारा लगाते हुए चल रहे थे। इस अवसर पर अप्रमित सागर और मुनि सहज सागर महाराज संघ का सानिध्य भी प्राप्त हुआ। इस मार्ग संतो का मिलन भी हुआ वैराग्य सागर जी व सुप्रभ सागर मुनिराज से आत्मिक मिलन भी हुआ।

तोरण द्वार व रंगोलियों से सजा मार्ग
कुन्हाडी जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा ने बताया कि विहार मार्ग को सुंदर रंगोलियों से सजा रखा था। विहार मार्ग में 100 से अधिक तोरण द्वार बनाए गए थे। प्रातः 08 बजे गुरुदेव आदित्य सागर ससंघ विहार पर जैन धर्मावलंबियों के साथ निकले। जैन पताका और गुरुदेव की चित्र तख्तियां लेकर जैन समाज के लोग विहार में जयकारे लगाते हुए निकल रहे थे। टीकम पाटनी व पारस बज ने बताया कि डीजे की धुन पर नाचते गाते ढोल बजाते लोग आगे बढ़े जा रहे थे। जुलूस नयापुरा स्टेडियम,कुन्हाडी होते हुए रिद्धि जैन मंदिर पहुंचे। मार्ग में जगह-जगह अगवानी की गई और पाद प्रक्षालन करते दिखे। इस अवसर पर सकल समाज से संयोजक राजमल पाटोदी,विमल नांता, अध्यक्ष प्रकाश बज,मंत्री पदम बडला,
कुन्हाडी जैन मंदिर से राजेन्द्र गोधा,टीकम पाटनी,पंकज खटोड़, पारस बज,पारस कासलीवाल,संजय लहुाडिया व पारस लुहाडिया,जिनेंद्र जैन जज साहब, सहित कई लोग जुलूस मार्ग नाचते— गाते चल रहे थे।इस अवसर पर चित्र अनावरणकर्ता मनोज जायसवाल पाद प्रक्षालन रोहित जैन संजय मजाल आरके पुरम, शास्त्र भेंट करता राजकुमार,मुकेश कुमार,प्रदीप कुमार जैन रिद्धि सिद्धि जैन मंदिर रहे।


लाभ के मद में सहजता न त्यागें
श्रमण श्रुतसंवेगी श्री 108 आदित्य सागर जी ने प्रवचन में कहा कि हमें उपलब्धि प्राप्त हो या कोई लाभ हो हमें सहज बने रहना चाहिए। लोभ में आकर या उपलब्धि व लाभ के मद में असहजता नहीं प्रकट करनी चाहिए। सहज रहकर अन्य को सम्मान देना चाहिए। गुरुदेव ने आध्यात्मिक प्रबंधन में कहा कि हमें अपनी सहजता या प्राकृतिक स्वभाव को नहीं खोना चाहिए। सफलता के समय में, अपने मूल्यों और विनम्रता को न भूलें। लाभ या उपलब्धियों से अहंकार न आने दें। उन्होंने कहा कि कृत्रिमता या दिखावे से बचें, चाहे आपकी स्थिति कितनी भी अच्छी क्यों न हो। उन्होंने दूसरों के प्रति संवेदनशील रहने का संदेश देते हुए कहा कि अपनी सफलता में भी दूसरों की भावनाओं और आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील रहकर कार्य करना चाहिए।

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