कोटा : पर्यावरण दिवस व गंगादशमी के शुभ अवसर पर सकतपुरा में पंडित जगदीश प्रसाद गौतम की ओर से बड़-पीपल के विवाह का आयोजन किया गया जिसमें कांग्रेस नेता व पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल ने भाग लिया और सनातन कालीन परंपरा के तहत आयोजित इस विवाह समारोह में उपस्थित लोगों को शुभकामनाएं एवं बधाई दी। गुंजल ने कहा कि इस परंपरा को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।
बरगद और पीपल के पेड़ों को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। बरगद को भगवान विष्णु का रूप और पीपल को देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है। इसलिए, इन पेड़ों की शादी करना भगवान को प्रसन्न करने का एक तरीका माना जाता है। इन पेड़ों की शादी को सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह गांव या समुदाय के बीच एक सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधि होती है। इस अवसर पर पुर्व पार्षद विकास तँवर, पुर्व प्रधान मन्नालाल गुर्जर, मनीष शर्मा, शम्भू सिंह तंवर, राजेन्द्र गौतम, प्रशांत सक्सेना सहित बड़ी संख्या में स्थानीय निवासी उपस्थित रहे।
कोटा में अनोखी शादी के साक्षी बने कई लोग
पेड़ों की अनोखी शादी देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हुए, डीजे की धुन पर बाराती जमकर थिरके और समधी मिलन समारोह भी हुआ, कोटा में अनोखी शादी के कई लोग साक्षी बने । ढोल की थाप पर नाचते गाते बराती, आतिशबाजी, बैंड-बाजों के साथ निकाले गए बासन, हल्दी मेहंदी सहित कई रीति रिवाज के साथ धूमधाम के साथ शादी समारोह आयोजित किया गया। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ दो पेड़ों का विवाह हुआ है. इसमें बाराती स्थानीय लोग बने और हिंदू परंपराओं के अनुसार मंगल गीतों के बीच आचार्य ने मंत्र उच्चारण कर फेरे कराए।
बड़-पीपल की शादी से पहले मिलाई गई कुंडली
जिस प्रकार से लड़के लड़कियों की शादी होती है, इस प्रकार से विधि विधान के साथ बड़ और पीपल के पेड़ की शादी कराई गई. शादी के लिए पहले कुंडली मिलवाई गई फिर हल्दी मेहंदी की रस्म के साथ ही लोगों को आमंत्रण भेजकर बुलाया गया। शुभ अवसर पर गुरुवार को बड़ ओर पीपल के पेड़ का विवाह कार्यक्रम धूमधाम से संपन्न हुआ.
दुल्हा-दुल्हन की तरह सजाया गया पेड़ों को
विवाह से पूर्व मेहंदी, हल्दी, बासन कार्यक्रम हुए और इसके बाद विवाह के लिए बड के पेड़ को दूल्हा तथा पीपल के पेड़ को दुल्हन की तरह सजाया गया. इस मौके पर महिलाओं ने मंगल गीत गाए। इस मौके पर भोजन भंडारे का भी आयोजन किया गया।
पंडित जगदीश प्रसाद गौतम ने बताया कि हिंदू रीति-रिवाजों में सभी धार्मिक कार्य पीपल के पेड़ में किए जाते हैं. विवाह करने के बाद ही यह वृक्ष पवित्र माना जाता है. शादी के बाद पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने मात्र से मनोकामना पूर्ण हो जाती है व बंधन बांधने, पूजा करने के लिए पवित्र माना जाता है।