‘मास्क के पीछे छिपा इंसान’

“बिहाइंड द मास्क, केयरिंग फॉर केयरगिवर्स” थीम के साथ डॉक्टर–मरीज संबंधों में भरोसे की पुनर्स्थापना का संकल्प

🖊️ डॉ. सुरेश कुमार पाण्डेय, प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक, लेखक एवं साइक्लिस्ट
📍 सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा
हर वर्ष 1 जुलाई को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (National Doctors’ Day) इस बार केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक आत्मचिंतन और कृतज्ञता का अवसर बन गया है। इस वर्ष की थीम “Behind the Mask, Caring for Caregivers” हमें यह सोचने पर विवश करती है कि जो हमारी देखभाल करते हैं, उनकी देखभाल कौन करता है?हमारे चिकित्सक मास्क के पीछे छिपे संवेदनशील इंसान हैं, जिनके अपने संघर्ष, सपने और सीमाएँ होती हैं। यह दिवस उन नायकों को सलाम करने का अवसर है जो हर दिन तनाव, थकान और असुरक्षा के बावजूद मानवता की सेवा में समर्पित रहते हैं।
भारत में चिकित्सा का इतिहास सुश्रुत, चरक और धन्वंतरि जैसे महान आचार्यों से जुड़ा है, जिन्होंने न केवल उपचार की परंपराएँ विकसित कीं, बल्कि इसे धार्मिक-नैतिक दायित्व के रूप में परिभाषित किया।आज भी कई लोग चिकित्सकों को “धरती का दूसरा भगवान” मानते हैं।लेकिन बदलते सामाजिक परिवेश में यह विश्वास डगमगाया है। चिकित्सा में जरा-सी असफलता पर हिंसा, आरोप और अविश्वास जैसी प्रतिक्रियाएँ आम हो गई हैं।

सेवा और समर्पण की मिसाल
कोविड काल में जब पूरा देश थम गया, डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी पी.पी.ई. किट में घंटों तक, अपने परिवार से दूर, अपनी जान दांव पर लगाकर हजारों जिंदगियों की रक्षा कर रहे थेभारत ने विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाया, लेकिन इसके पीछे इन नायकों की निःस्वार्थ तपस्या थी।
भारत का चिकित्सा इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। प्राचीन काल में सुश्रुत, चरक और धन्वंतरि जैसे चिकित्सकों ने विश्व चिकित्सा को दिशा दी। आज भी आमजन डॉक्टर को “धरती का दूसरा भगवान” मानते हैं। परंतु समय के साथ इस भरोसे में दरारें आ गईं हैं। कभी उपचार में देरी, कभी संवाद की कमी या कभी सोशल मीडिया पर फैली गलत धारणाओं के चलते डॉक्टरों और मरीजों के बीच अविश्वास पनपने लगा है। इसके परिणामस्वरूप चिकित्सकों के प्रति हिंसा की घटनाएं भी बढ़ी हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार, देश के 75 प्रतिशत चिकित्सक अपने कार्यस्थल पर किसी न किसी रूप में हिंसा का शिकार हुए हैं।
मानसिक तनाव और कार्य के अत्यधिक दबाव ने चिकित्सकों के स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डाला है। एक शोध के अनुसार, 82.7 प्रतिशत डॉक्टर निरंतर तनाव में रहते हैं और उनकी औसत आयु सामान्य जनसंख्या से 10 वर्ष कम होती है। महिला चिकित्सकों को तो दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव, उत्पीड़न और असुरक्षा के कारण 40 प्रतिशत महिला चिकित्सक अपने करियर के पहले 6 वर्षों में ही पेशा छोड़ देती हैं। 2024 में कोलकाता के आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला रेजिडेंट डॉक्टर के साथ हुई बलात्कार और हत्या की घटना ने देश को झकझोर दिया और इस विषय की गंभीरता को उजागर किया।

कोविड-19 महामारी ने चिकित्सकों के निस्वार्थ समर्पण की सच्ची परीक्षा ली। पीपीई किट पहनकर घंटों काम करना, परिवार से दूर रहना और अपनी जान की परवाह किए बिना मरीजों की सेवा करना—यह सब उनके कर्मयोगी स्वभाव का प्रमाण है। इस महामारी के दौरान भारत ने विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाया, जिसके पीछे चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की अथक मेहनत और समर्पण था।

हालांकि तकनीकी प्रगति ने भारतीय चिकित्सा व्यवस्था को वैश्विक स्तर पर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। आज भारत एशिया में मेडिकल टूरिज्म का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक सर्जरी और टेलीमेडिसिन ने नई संभावनाएं खोली हैं। लेकिन इन सफलताओं के पीछे डॉक्टरों की साधना, सेवा और समर्पण ही सबसे बड़ा आधार है। बावजूद इसके, देश की जीडीपी का केवल 3.8 प्रतिशत स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च होता है, जो अत्यधिक कम है। इस बजट को 10 प्रतिशत तक बढ़ाया जाना नितांत आवश्यक है। इस अवसर पर हमें यह भी स्मरण करना चाहिए कि यह दिवस महान चिकित्सक, शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय की स्मृति में मनाया जाता है। उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में संगठित प्रयासों की नींव रखी और भारतीय चिकित्सा परिषद एवं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि चिकित्सा केवल एक पेशा नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का माध्यम है।डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वास का रिश्ता पुनः सशक्त करने के लिए समाज को चिकित्सकों के प्रति सम्मान, सहयोग और संवाद का वातावरण बनाना होगा। मरीजों को चिकित्सकों पर भरोसा करना सीखना होगा, और चिकित्सकों को भी संवाद कौशल और संवेदनशीलता के साथ अपने व्यवहार में पारदर्शिता लानी होगी। तभी एक स्वस्थ, सुरक्षित और विश्वासपूर्ण चिकित्सा प्रणाली संभव होगी।
इस राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस 2025 पर आइए हम सभी यह संकल्प लें कि हम चिकित्सकों की सेवा और सुरक्षा के लिए न केवल आवाज उठाएँगे, बल्कि उनका मनोबल बनाए रखने हेतु हर संभव प्रयास करेंगे। “बिहाइंड द मास्क” की थीम हमें यह याद दिलाती है कि चिकित्सक कोई देवता नहीं, बल्कि एक साधारण इंसान है, जो असाधारण सेवा के लिए हर दिन स्वयं को समर्पित करता है। आइए, हम उनके योगदान का उत्सव मनाएं और एक ऐसा समाज बनाएं जहाँ देखभाल करने वालों की भी देखभाल हो।

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