धन का सदुपयोग समाज और धर्म के कार्यों में हो — आर्यिका विभाश्री माताजी

कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर इन दिनों अध्यात्म, साधना और आत्मचिंतन का केंद्र बना हुआ है। परम पूज्य आचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज एवं आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज की पावन सन्निधि, गणिनी प्रमुख आर्यिका श्री 105 विभाश्री माताजी तथा आर्यिका श्री 105 विनयश्री माताजी (संघ सहित) के निर्देशन में 13 पिच्छियों का भव्य चातुर्मास उत्सव धार्मिक गरिमा और अनुशासन के साथ संपन्न हो रहा है।
अध्यक्ष राजमल पाटौदी एवं महामंत्री अनिल जैन ठौरा ने बताया कि दीप प्रज्वलन एवं शास्त्र भेंट का पुण्य अवसर श्रावक श्रेष्ठि परिवार — मनोहर लाल, स्वदेश, रुचिका, नवीन, निधि, अतिशय, अंकिता एवं ऋषि जैन विज्ञान नगर को प्राप्त हुआ।
प्रवचन के दौरान गणिनी प्रमुख आर्यिका श्री 105 विभाश्री माताजी ने तत्वार्थ सूत्र कक्षा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि केवल सांसारिक सुख-सुविधाओं में डूबना ही जीवन का उद्देश्य नहीं होना चाहिए। विनम्रता और संयम ही वास्तविक साधना है, जो आत्मकल्याण और समाजकल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है।
माताजी ने आगे कहा कि धन का सदुपयोग तभी है जब उसे समाज और धर्म के कार्यों में लगाया जाए। उन्होंने अनुयायियों को अपनी आय का 10% दान करने की प्रेरणा दी और समझाया कि 10% दान पुण्य दान, 17% मध्यम दान और 25% उत्कृष्ट दान कहलाता है।
तत्वार्थ सूत्र को परिभाषित करते हुए माताजी ने आत्मा के तीन अनन्त गुणों — शक्ति, अनन्तलोक और अनन्तपर्याय — पर प्रकाश डाला और बताया कि प्रत्येक आत्मा में असीम संभावनाएँ निहित हैं। साधना का मार्ग इन्हीं गुणों के विकास से प्रशस्त होता है। कार्यक्रम का संचालन पी.के. हरसोरा ने किया। इस अवसर पर धर्मसभा में राजेंद्र बज, विनोद टोरडी, मनोज जैसवाल, रितेश सेठी, ताराचंद बड़ला, इंद्रकुमार जैन सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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