भोग नहीं योग है भारतीय संस्कृति का आधार, विवेक के बिना ज्ञान अधूरा, सत्संग ही खोलता है सही राह”
कोटा। गुरु आस्था परिवार कोटा के तत्वावधान में तथा सकल दिगंबर जैन समाज कोटा के आमंत्रण पर, तपोभूमि प्रणेता, पर्यावरण संरक्षक एवं सुविख्यात जैनाचार्य आचार्य 108 श्री प्रज्ञासागर जी मुनिराज का 37वां चातुर्मास महावीर नगर प्रथम स्थित प्रज्ञालोक में श्रद्धा, भक्ति और आध्यात्मिक गरिमा के साथ संपन्न हो रहा है।
गुरु आस्था परिवार के महामंत्री नवीन दौराया ने बताया कि भूमि विकास बैंक अध्यक्ष चैनसिंह राठौड़ ने गुरूदेव को नमन कर आशीर्वाद लिया ओर उन्हे श्री फल भेंट किया।
संचालन लोकेश जैन सीसवाली ने किया।
आचार्य 108 श्री प्रज्ञा सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में आचार्य प्रज्ञासागर महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि सम्यक दर्शन और सम्यक ज्ञान की प्राप्ति विवेक के बिना असंभव है। विवेक सत्संग से प्राप्त होता है और यही विवेक बुद्धि को सही दिशा में ले जाता है। उन्होंने कहा कि सत्संग किसी भी साधु के साथ हो सकता है।आचार्य प्रज्ञासागर ने कहा कि सत्संग जीवन में विवेक का द्वार खोलता है। विवेक के बिना हम यह भी नहीं समझ सकते कि क्या त्यागना है और क्या ग्रहण करना है। जब विवेकयुक्त बुद्धि काम करती है तो व्यक्ति सही मार्ग की ओर अग्रसर होता है, अन्यथा वह भोग और मोह में उलझकर भटक जाता है।
भारतीय संस्कृति का संदेश
उन्होंने भारतीय संस्कृति को योग और संयम की संस्कृति बताते हुए कहा कि यह संस्कृति त्याग, सौहार्द, सदाचार और संस्कारों से परिपूर्ण है। यह भोग में उलझाने वाली नहीं, बल्कि योग से महायोगी बनाने वाली संस्कृति है।जन्मदिन की परंपरा पर टिप्पणी करते हुए आचार्य प्रज्ञासागर ने कहा कि आज लोग जन्मदिन पर मोमबत्तियाँ बुझाते हैं, जबकि हमारी संस्कृति “अंधकार से प्रकाश की ओर” ले जाने वाली है। जन्मदिन पर आयु के अनुसार दीपक जलाना चाहिए।
इस अवसर पर इस अवसर पर यतीश जैन खेडावाला,अजय जैन,अनिल दौराया, विनय शाह,नितेश जैन,विजय लुहाड़िया, मनोज सेठी,नितिन बाबरिया,भूपेंद्र पिड़ावा,पारस पिड़ावा,
शैलेन्द्र जैन,गुलाब लुहाड़िया ,मिलाप अजमेरा,नवीन बाबरिया,राजेन्द्र कोटिया,त्रिलोक जैन, योगेश सिंघम सहित कई लोग उपस्थित रहे।
सादर प्रकाशनार्थ सम्पादक महोदय
भवदीय
यतीश जैन खेडावाला