कोटा कोचिंग इंडस्ट्री में एक ओर प्रयोगशाला

कोटा कोचिंग के नए प्लेयर — उम्मीदों की उड़ान या फीके पकवान?

डिजिटल डेक्स इवनिंग न्यूज
दखल @ राहुल पारीक

देशभर में मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी का गढ़ कहे जाने वाले कोटा में कोचिंग संस्थानों की भरमार कोई नई बात नहीं है।पांच हजार करोड़ रुपए के इस विशाल उद्योग में हर वर्ष नए खिलाड़ी प्रवेश करते हैं और अपने साथ लेकर आते हैं नए सपने, नए वादे और नई उम्मीदें। परंतु यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या ये संस्थान शिक्षा के मंदिर हैं या सिर्फ व्यावसायिक प्रयोगशालाएं, जहाँ हर वर्ष हज़ारों छात्र अपने भविष्य के सपनों के साथ प्रवेश करते हैं, और उनमें से बहुत से केवल भ्रम और ठगे जाने का एहसास लेकर लौटते हैं।
न्यूक्लियस,एड्युवेव, बीट्रिक्स, फिटजी एकलव्य, संकल्प, पेस और सर्वोत्तम जैसे नामों से पहचानी जाने वाली कई कोचिंग संस्थानें पिछले वर्षों में बड़े-बड़े दावों के साथ सामने आईं, लेकिन कुछ ही समय बाद या तो उन्होंने अपनी गतिविधियां सीमित कर दीं या पूर्णतः बंद कर दीं। यह परिदृश्य छात्रों और उनके अभिभावकों के लिए मानसिक और आर्थिक स्तर पर गहरा आघात बनता जा रहा है। इन संस्थानों की विफलता की सबसे त्रासद कहानी उस कोचिंग की है जिसने मात्र एक रुपए की फीस में कोचिंग का दावा किया था। यह दावा न केवल अंततः कोरी कल्पना ही साबित हुआ, बल्कि सैकड़ों छात्रों की उम्मीदों को भी मिट्टी में मिला गया।

सपनों का कारोबार, हकीकत का दर्द
कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री  करीब 5,000 करोड़ रुपए की है। इसी विशाल बाजार में हाल ही में एक और नया खिलाड़ी — “कॅरियर विल नीट ऑफलाइन सेंटर” — मैदान में उतरा है। इस संस्थान ने खुद को ‘ऑल इन वन’ समाधान बताकर छात्रों को सुनहरे सपने दिखाए हैं। दावा किया गया कि यहां शिक्षा पद्धति में आमूल-चूल परिवर्तन लाया जाएगा और पुराने पैटर्न को बदला जाएगा।
परंतु गौर करने वाली बात यह है कि इस संस्थान की फैकल्टी वहीं से आई है, जिनकी शिक्षण व्यवस्था और पैटर्न पर यह संस्थान स्वयं सवाल खड़ा कर रहा है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि यदि पूर्व की प्रणाली त्रुटिपूर्ण थी, तो 15 से 26 वर्षों तक उसमें रहकर पढ़ाने वाले इन शिक्षकों की विश्वसनीयता क्या है?

विरोधाभास:अपने ही अनुभव पर प्रश्नचिह्न
सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस नई कोचिंग से जुड़ी फैकल्टी का रुख पूर्णतः विरोधाभासी है। एक ओर वे अपने 15-26 साल के अनुभव का डंका पीट रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हीं संस्थानों की शिक्षा प्रणाली को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं जहां उन्होंने यह अनुभव प्राप्त किया है। डॉ. दिलीप अरोड़ा, दिनेश जैन, अन्य शिक्षकों का कहना है कि उनके पूर्व संस्थानों में “भेदभाव था”, “एवरेज बच्चों की उपेक्षा होती थी”, और “अच्छी फैकल्टी नहीं मिलती थी”। यदि यह सच है तो सवाल उठता है कि इन्होंने वर्षों तक उसी त्रुटिपूर्ण व्यवस्था का हिस्सा बनकर क्यों काम किया? प्रणाली में भेदभाव, क्रीम और एवरेज छात्रों के बीच पक्षपात जैसे आरोप तो लगाए गए हैं, लेकिन यह बताने से बच गया कि इतने वर्षों तक इसी प्रणाली का हिस्सा रहते हुए उन्होंने इस असमानता के विरुद्ध क्या प्रयास किए?
फिजिक्स फैकल्टी दिनेश जैन का स्वीकारोक्ति और भी चौंकाने वाली है। उनका कहना है कि “पुराने संस्थान में पैकेज की कोई समस्या नहीं थी लेकिन मन का काम नहीं कर पा रहे थे।” यह बयान स्पष्ट करता है कि इनकी मुख्य चिंता शिक्षा की गुणवत्ता या छात्रों का कल्याण तो बिल्कुन नहीं है।
इन नए खिलाड़ियों द्वारा कोटा की स्थापित संस्थानों पर लगाए गए आरोप न केवल अनुचित हैं बल्कि तथ्यों के भी विपरीत हैं। कोटा की प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थानों ने वर्षों की मेहनत से AIR 1 से 10 तक के परिणाम दिए हैं और अखिल भारतीय स्तर पर कोटा का नाम रोशन किया है। ऐसे में सफलता के नित नए झण्डे गाडने वाले संस्थान बौने और नवजात संस्थान अपनी अप्रमाणित शिक्षण प्रणाली को सर्वश्रेष्ट बता रहे है,व्यावसायिक नैतिकता का उल्लंघन है।

आत्महत्या का मुद्दा: संवेदनहीनता की पराकाष्ठा
कोटा में छात्र आत्महत्याओं का मुद्दा अत्यंत गंभीर और संवेदनशील है। इस नई कोचिंग के शिक्षकों द्वारा इस मुद्दे को एक मार्केटिंग टूल की तरह इस्तेमाल करना अत्यंत निंदनीय है। उनका दावा है कि उनकी संस्थान में “आत्महत्या जैसी घटनाएं नहीं होंगी” क्योंकि वे बेहतर शिक्षा देंगे,मानसिक दबाव कम होने घटनाएं रूकेंगी।
यह रुख न केवल संवेदनहीन है बल्कि छात्र आत्महत्याओं के वास्तविक कारणों की पूर्ण अनदेखी भी करता है।
संस्थान के वक्ताओं द्वारा आत्महत्याओं की घटनाओं के लिए पूर्व कोचिंग संस्थानों की पढ़ाई व्यवस्था को दोषी ठहराना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि बेहद संवेदनहीन भी है। यह कहना कि बच्चों को ‘सॉल्यूशन’ नहीं मिल रहा था इसलिए वे आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे थे, एक अत्यंत सरलीकरण है, जो कि विद्यार्थियों की मानसिक स्थिति, पारिवारिक दबाव, सामाजिक अपेक्षाओं और अन्य मनोवैज्ञानिक पहलुओं की अनदेखी करता है।
विशेषज्ञों के अनुसार छात्र आत्महत्याओं के कारण जटिल होते हैं – पारिवारिक दबाव, सामाजिक अपेक्षाएं, आर्थिक तनाव, प्रतिस्पर्धा का दबाव, आरक्षण नीति की जटिलताएं, गलत संगत, और व्यक्तिगत समस्याएं। किसी एक संस्थान के बदलने से इन समस्याओं का समाधान संभव नहीं।

संस्थान संचालन का अनुभव: शून्य
इस पूरे प्रकरण में सबसे गंभीर चिंता यह है कि इन फैकल्टी के पास संस्थान संचालन का कोई अनुभव नहीं है। पढ़ाना एक बात है और संस्थान चलाना बिल्कुल अलग। एक सफल कोचिंग संस्थान चलाने के लिए शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ प्रबंधन कुशलता, वित्तीय नियोजन, मानव संसाधन प्रबंधन और दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता होती है।

नियामक निरीक्षण
प्रश्न यह भी उठता है कि क्या बिना किसी प्रशासनिक गारंटी और संचालन अनुभव के, इस प्रकार के नए संस्थानों को विद्यार्थियों के भविष्य के साथ प्रयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए? सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा। बिना किसी ठोस गारंटी, वित्तीय जमानत या नियामक निगरानी के नई कोचिंग संस्थानों को खुलने की अनुमति देना छात्रों और अभिभावकों के साथ अन्याय है।
जब कोचिंग गाइडलाइन्स और मनोवैज्ञानिक सहायता केंद्रों की बात होती है, तो अधिकांश पुराने संस्थान इनमें अग्रणी रहे हैं। नए संस्थान इन विषयों पर कोई ठोस रूपरेखा न प्रस्तुत करके, केवल पुराने मॉडल की आलोचना कर अपनी नई पिच खड़ी करते दिख रहे है।

शिक्षा: व्यवसाय नहीं, ज़िम्मेदारी है
शिक्षा एक संवेदनशील और जिम्मेदारीपूर्ण क्षेत्र है। यह केवल पैकेज, विज्ञापन, और बड़े-बड़े वादों का खेल नहीं है। कोटा को अखिल भारतीय रैंक 1 से लेकर टॉप 10 तक पहुंचाने वाली प्रणाली को पूरी तरह खारिज करना, और स्वयं को ‘क्रांतिकारी’ कहकर प्रस्तुत करना तब तक अधूरा है जब तक वह परिणामों में नहीं बदलता।छात्रों को गारंटी नहीं, गुणवत्ता चाहिए और गुणवत्ता वह होती है जो टिकाऊ हो, भरोसेमंद हो और पारदर्शी हो — ना कि केवल प्रचारात्मक हो।कोटा के छात्रों को प्रयोगों की नहीं, स्थिरता, मार्गदर्शन और सच्ची शिक्षा व्यवस्था की ज़रूरत है। प्रशासन को चाहिए कि वह ऐसे नए संस्थानों की बारीकी से जांच करे, पारदर्शी नीतियों के तहत उन्हें काम करने दे, और छात्रों के हितों की सुरक्षा के लिए सख्त निगरानी रखे। वरना हर साल कोटा आने वाले लाखों छात्र, एक बार फिर वादों के मकड़जाल में फंसकर खुद को ठगा महसूस करते रहेंगे।

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