अक्षय सौभाग्य और मोक्ष की ओर ले जाने वाला व्रत है सुहाग दशमी

श्रद्धा, संयम और तप से होता है सौभाग्य का सृजन— आचार्य प्रज्ञासागर जी महाराज

कोटा। सुहाग दशमी (अक्षय दशमी) के पावन अवसर पर परम पूज्य गुरुदेव आचार्य प्रज्ञासागर जी महाराज ने व्रत, धर्म और तपस्या की महिमा पर आधारित प्रवचन देते हुए कहा कि “जो व्रत मोक्ष का सुख दे सकता है, वह सांसारिक सुख भी दे तो कोई आश्चर्य नहीं। यह तो उसका प्रारंभिक फल है।”
जैनाचार्य ने सुहाग दशमी कथा महिलाओं को सुनाते हुए कहा कि जैन धर्म में त्याग, तप और धर्म को जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि माना गया है। जैनधर्म की यही विशेषता है — व्रत और तप से कर्मों का क्षय होता है, और जब कर्मों का क्षय होता है तो आत्मा अपने मूल स्वरूप की ओर अग्रसर होती है।

क्यों कहा जाए सुहाग दशमी को “अक्षय दशमी”
गुरुदेव ने कहा कि सुहाग दशमी केवल सांसारिक सुहाग की कामना का पर्व नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अनुष्ठान है, जिसकी गहराई में मोक्ष की आकांक्षा निहित है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जैसे हिंदू धर्म में करवा चौथ सौभाग्य के लिए किया जाता है, वैसे ही जैन परंपरा में सुहाग दशमी को व्रत के रूप में अक्षय सुख और मोक्ष की प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाना चाहिए।

श्रद्धा, संयम और तप से होता है सौभाग्य का सृजन
गुरुदेव ने कहा कि जो स्त्री श्रद्धा, संयम और सात्विक भाव से यह व्रत करती है, वह न केवल अखंड सौभाग्य की अधिकारी बनती है, बल्कि संसारिक सुख और आध्यात्मिक समृद्धि को भी प्राप्त करती है। कठिन परिस्थितियों में भी धर्म की राह पर चलकर आत्मा को सौभाग्य और मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है।
उन्होंने सुहाग दशमी की कथा का उल्लेख करते हुए कहा कि यह कथा हमें सिखाती है कि कर्म, धर्म और संयम का पालन कर हम जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। यह कथा केवल स्त्रियों के लिए नहीं, अपितु हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

व्रत, उपवास और शील से धर्म की प्राप्ति
प्रवचन में गुरुदेव ने कहा कि व्रत, उपवास और शील धर्म को बढ़ाते हैं। शील के प्रभाव से धर्म की प्राप्ति होती है, और धर्म के प्रभाव से जीवन में स्थायी सुख और सौभाग्य का आगमन होता है। उन्होंने कहा कि “सौभाग्य दशमी की कथा वास्तव में सौभाग्य को बढ़ाने वाली कथा है, धर्म को पुष्ट करने वाली कथा है।”

पुण्य की प्रकृति: वैभव का वास्तविक आधार
अपने प्रवचन के उत्तरार्ध में गुरुदेव ने पुण्य की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “जीवन में जो भी वैभव है — यश, कीर्ति, धन, पद, सम्मान — यह सब आपके पुण्य की ही प्रकृति है।” गुरुदेव ने 68 प्रकार के पुण्यों की चर्चा करते हुए बताया कि पुण्य केवल स्वयं करने से ही नहीं, बल्कि पुण्यात्मा की अनुमोदना करने से भी अर्जित होता है। उन्होंने कहा कि यदि हम किसी तपस्वी, त्यागी या सेवाभावी व्यक्ति की अनुमोदना करते हैं, तो वह भी पुण्य का कारण बनती है।

सुपात्र को दान ही देता है पुण्य का फल
गुरुदेव ने स्पष्ट किया कि दान तभी पुण्यदायी होता है जब वह सुपात्र को दिया जाए। सुपात्र को दिया गया दान ही आपको उत्तम कुल, गुणवती संतान, स्वास्थ्य, शिक्षा, श्रेष्ठ स्वभाव और चरित्र प्रदान करता है।

इस अवसर पर चैयमेन यतिश जैन खेडावाला,अध्यक्ष लोकेश जैन,महामंत्री नवीन दौराया,कोषाध्यक्ष अजय जैन,शैलेन्द्र जैन, विनय बिलाला,राजीव पाटनी, संजय खटकिड़ा,अनिल दौराया,त्रिलोक जैन, शम्भू जैन, लोकेश दमदमा, योगेश सिंघम, विकास मजीतिया, नीलेश खटकिडा, आशीष जैसवाल, अजय मेहरू, संजीव जैन, शैलेन्द्र जैन ‘शैलू’, गुलाबचंद लुहाड़िया, मिलाप अजमेरा,विनय शाह,नितेश बडजातिया, अजय खटकिडा,अर्पित सराफ, भूपेन्द्र जैनविनय बलाला, लोकेश दमदमा,विकास मजीतिया,कपिल आगम,आशीष जैसवाल,अनिल दौराया,नवीन बाबरिया,विनोद जैन व संजीव जैन सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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