सम्यक ज्ञान, चारित्र और दर्शन से ही आत्मा परमात्मा बनती है — आचार्य प्रज्ञासागर जी महाराज

प्रज्ञालोक में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव : नन्हे कान्हा की लीलाओं से गूंजा परिसर

कोटा। प्रज्ञालोक में चल रहे अनुपम चातुर्मास महोत्सव के अंतर्गत श्रीकृष्ण जन्मोत्सव रविवार को हर्षोल्लास एवं धार्मिक भक्ति भाव के साथ मनाया गया। इस अवसर पर छोटे-बड़े सभी ने कृष्ण रूप धारण किया, वहीं नन्हे-मुन्ने बालक-बालिकाएं राधा-कृष्ण बनकर कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण बने।
अध्यक्ष लोकेश जैन ने बताया कि भक्ति रंग में सराबोर आयोजन में वासुदेव द्वारा कारागार से बालकृष्ण को यमुना पार कर नंदग्राम ले जाने का भावुक दृश्य नाट्यरूप में प्रस्तुत किया गया, जिसने श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया। लोकश जैन, नवीन दौराया, रिंकू जैन दौराया, विनस जैन, विशाल जैन सबदरा,नितेश जैन, विजय लुहाड़िया एवं विनय शाह ने क्रमशः कृष्ण, सुदामा, वासुदेव, देवकी और ग्वालों का रूप लेकर जीवंत अभिनय प्रस्तुत किया।
नंदोत्सव भी उल्लासपूर्वक मनाया गया। नन्हे कन्हैया बने बच्चों ने मटकी से माखन खाने की लीला कर श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। जन्मोत्सव की बधाई भजन-कीर्तन के साथ गूंज उठी और वातावरण कृष्णमय हो गया। कोषाध्यक्ष अजय जैन दौराया ने बताया लगभग 175 से अधिक समाज के नन्हे बालक—बालिकाएं राधा व कृष्ण के मनमोहक गणवेष में आई जिन्हे गुरू आस्था परिवार द्वारा सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर गुरुदेव आचार्य प्रज्ञासागर जी महाराज ने श्रीकृष्ण जन्म की कथा सुनाते हुए प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण सच्चे कर्मयोगी थे। उन्होंने गीता के माध्यम से संसार को कर्म का संदेश दिया कि शुभ कर्म सुख लाते हैं और अशुभ कर्म दुख का कारण बनते हैं।
गुरुदेव ने समझाया कि गीता में वर्णित कर्म का यही संदेश समयसार जी में भी मिलता है। उन्होंने श्रीकृष्ण जन्म की आध्यात्मिक व्याख्या करते हुए कहा कि कृष्ण का जन्म कारागार में मध्यरात्रि को हुआ, जब घड़ी के तीनों कांटे एक बिंदु पर आकर मिलते हैं। यह प्रतीक है सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र और सम्यक दर्शन का। जब यह तीनों तत्व हमारे जीवन में एक साथ आते हैं, तभी आत्मा परमात्मा का स्वरूप प्राप्त करती है।उन्होंने आगे कहा कि हमारा जीवन भी कर्मरूपी कारागार में बंधा हुआ है। जब आत्मा में परमात्मा का जन्म होगा, तभी कर्मबंधनों की बेड़ियां स्वतः टूट जाएंगी और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा।

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